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चुनावी साल में कांग्रेस की नई टेंशन, निर्दलीयों और बसपा से आए विधायकों को कैसे करेंगे एडजस्ट... - कांग्रेस में टेंशन

चुनावी साल में कांग्रेस की नई टेंशन, निर्दलीयों और बसपा से आए विधायकों को कैसे करेंगे एडजस्ट...

 

 रामस्वरूप लामरोड़

 

जयपुर, कांग्रेस के समक्ष चुनौतियों की कमी नहीं है। फिलहाल अशोक गहलोत और सचिन पायलट के खेमों में बंटी कांग्रेस की चुनावी राह डगमगाई हुई है। गहलोत और पायलट एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाकर स्वयं को श्रेष्ठ बताने की हौड़ में लगे है। आगामी दिनों में कांग्रेस के सामने एक और संकट खड़ा होने वाला है। यह संकट प्रदेश के 13 निर्दलीय विधायक और बसपा छोड़ कर कांग्रेस में शामिल होने वाले 6 विधायकों को लेकर है। ढाई साल पहले जब कांग्रेस सरकार संकट से गुजर रही थी तब बसपा से आए 6 विधायकों और 13 निर्दलीय विधायकों ने सरकार का साथ दिया था। उन्हीं की वजह से प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बच पाई थी। बसपा से आने वाले और निर्दलीय विधायकों में अधिकतर कांग्रेस पृष्ठभूमि के हैं। ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में ये पार्टी से टिकट मांगेंगे। स्थानीय कांग्रेसी नेता भी टिकट की दावेदारी पेश करेंगे। ऐसे में कांग्रेस में टकराव होना तय है।

 

कांग्रेस प्रत्याशी एकजुट होकर जता चुके नाराजगी

 

जिन 13 विधानसभा सीटों पर निर्दलीयों ने जीत हासिल की थी और जहां 6 सीटों पर बसपा के प्रत्याशियों ने चुनाव जीता था। इन 19 सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी रहे नेताओं ने पिछले दिनों नाराजगी जताई थी। वर्ष 2018 के चुनावों में इन 19 सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी रहे नेताओं ने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में आकर प्रदेश प्रभारी सुखजिन्दर सिंह रंधावा के समक्ष अपनी पीड़ा जाहिर की थी। उनका कहना था कि राज्य सरकार अपनी पार्टी के नेताओं की सुनवाई करने के बजाय कांग्रेस को हराने वाले विधायकों को तवज्जो दे रही है। बसपा से आए 6 और 13 निर्दलीय विधायक अपनी मनमानी कर रहे हैं। कांग्रेस सरकार ने उन्हें खुली छूट दे रखी है। कांग्रेसी नेताओं की बजाय उन्हीं की डिजायर पर पोस्टिंग ट्रांसफर हो रहे हैं।

 

अशोक गहलोत खुद को बता चुके अभिभावक

 

जुलाई 2020 में प्रदेश की कांग्रेस सरकार संकट के दौर से गुजरी थी। अगस्त 2020 में स्थितियां ठीक हो पाई और सरकार बच गई। उन दिनों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी पार्टी के विधायकों के साथ बसपा से आए 6 विधायकों और 13 निर्दलीय विधायकों का आभार जताते हुए कहा था कि आप लोगों के साथ देने के कारण ही सरकार बच पाई है। गहलोत ने कहा था कि सरकार बचाने में सहयोग देने वाले विधायकों का अहसान वे कभी नहीं भूला सकेंगे। साथ ही गहलोत ने यह वादा भी किया कि वे सभी के अभिभावक के रूप में काम करेंगे। सरकार बचाने वालों का वे हमेशा ध्यान रखेंगे और उनकी हर बात मानने का प्रयास करेंगे। अब 7-8 महीने बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं।

 

ऐसे बनेंगे टकराव के हालात

 

जाहिर तौर पर बसपा से कांग्रेस में आने वाले सभी 6 विधायक आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट के लिए दावेदारी पेश करेंगे। 13 निर्दलीय विधायकों में से अधिकतर विधायक भी कांग्रेसी पृष्ठभूमि के होने के कारण टिकट के दावेदार होंगे। साथ ही उन 19 विधानसभा सीटों पर वर्ष 2018 में चुनाव हारने वाले कांग्रेसी नेता भी टिकट मांगेंगे। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व के सामने टकराव के हालात बनने वाले हैं। निर्दलीय विधायकों के पास अपने कार्यकर्ता हैं जबकि कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता लगातार निर्दलीय विधायकों की खिलाफत करते आए हैं। अगर अशोक गहलोत की सिफारिश पर निर्दलीय या बसपा से आए नेताओं को टिकट दिया जाता है तो कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और नेताओं का नाराज होना जायज है। ऐसे में टकराव के हालात बनना तय है।

 

ये हैं 13 निर्दलीय और बसपा से आए 6 विधायक

 

निर्दलीय विधायकों में संयम लोढा, बाबूलाल नागर, बलजीत यादव, महादेव सिंह खंडेला, आलोक बेनीवाल, लक्ष्मण मीणा, ओमप्रकाश हुड़ला, रामकेश मीणा, रमिला खड़िया, खुशवीर सिंह जोजावर, राजकुमार गौड़, कांति प्रसाद मीणा और सुरेश टाक शामिल हैं। इन 13 निर्दलीयों में सुरेश टाक और ओमप्रकाश हुड़ला को छोड़कर बाकी सभी विधायक कांग्रेस पृष्ठभूमि के हैं। बसपा के चुनाव चिन्ह पर जीत हासिल करके आने वाले 6 विधायक जोगेन्द्र सिंह अवाना, राजेन्द्र सिंह गुढा, दीपचंद खेरिया, लाखन मीणा, संदीप यादव और वाजिब अली हैं। इन विधायकों पर कांग्रेस सरकार विशेष महरबान रही है। निर्दलीय विधायक संयम लोढा और बाबूलाल नागर मुख्यमंत्री के सलाहकार हैं। बसपा से कांग्रेस में आए 6 विधायकों में से 1 राजेन्द्र सिंह गुढा राज्यमंत्री हैं और अन्य 5 को विभिन्न बोर्डों में पदभार दिया गया है। 

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